Lawyer Creates Ruckus In CJI Court: सुप्रीम कोर्ट में चल रही कार्रवाई के बीच एक वकील ने सीजेआई की अदालत में हंगामा करना शुरू कर दिया और जूता निकालने की भी कोशिश की है।
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक चौंकाने वाली घटना हुई। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की बेंच में एक वकील अचानक उग्र हो गया और उसने अदालत में हंगामा करना शुरू कर दिया। वकील ने गुस्से में आकर जूता निकालकर सीजेआई पर फेंकने की कोशिश की, जिससे कोर्ट रूम में हलचल मच गई। घटना के तुरंत बाद सुरक्षा कर्मियों ने हरकत में आकर उस वकील को हिरासत में ले लिया और उसे कोर्ट रूम से बाहर ले जाया गया। आइए जानें कि सीजेआई के सामने हंगामा करने वाले वकील को कितनी सजा मिल सकती है और जूता निकालने की कोशिश पर आखिर क्या एक्शन हो सकता है।
यह घटना कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली मानी गई है, और अब उस वकील पर अदालत की अवमानना की कार्रवाई तय मानी जा रही है।
किस एक्ट में हो सकती है कार्रवाई
भारत का कानून ऐसे मामलों में बहुत साफ है, Contempt of Courts Act, 1971 के तहत अगर कोई व्यक्ति कोर्ट की मर्यादा तोड़ता है, अपमानजनक व्यवहार करता है या न्याय की प्रक्रिया में बाधा डालता है, तो उसे सजा दी जा सकती है। संविधान के Article 129 के तहत सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि वह अपने अपमान से जुड़े मामलों में खुद कार्रवाई कर सके।
कितनी हो सकती है सजा
अगर कोई व्यक्ति अदालत के अंदर हंगामा करता है, जज से अभद्रता करता है या जूता निकालने जैसी हरकत करता है, तो यह क्रिमिनल कंटेम्प्ट की श्रेणी में आता है। ऐसे मामलों में अदालत दोषी व्यक्ति को 6 महीने तक की साधारण कैद या 2000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों सजा दे सकती है। हालांकि कानून में एक राहत का प्रावधान भी है। अगर आरोपी व्यक्ति अपनी गलती स्वीकार कर ले और माफी मांग ले, और अदालत को उसका पश्चाताप सच्चा लगे, तो सजा कम की जा सकती है या रद्द भी की जा सकती है।
लेकिन अगर अदालत को लगे कि गलती जानबूझकर की गई है या माफी सिर्फ दिखावा है, तो सख्त सजा से बचना मुश्किल होता है।
बीएनएस की कौन सी धारा लगेगी?
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के नियमों के तहत, अगर कोई व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया के दौरान किसी सरकारी अधिकारी या लोक सेवक का जानबूझकर अपमान करता है या उसके काम में बाधा डालता है, तो इसके लिए धारा 267 लागू होती है। इस अपराध में दोषी को अधिकतम छह महीने तक की जेल या 5000 रुपये तक का जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में पहले भी ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जहां अदालत की मर्यादा तोड़ने पर वकीलों को जेल और जुर्माने की सजा दी गई है। कई बार अदालत ने माफी स्वीकार करके सजा कम भी की है, लेकिन अगर मामला चीफ जस्टिस के सामने हुआ हो, तो इसे बेहद गंभीर माना जाता है।